रूस चाहता है कि पश्चिम यह वादा करे कि यूक्रेन उसके नाटो रक्षात्मक गठबंधन में शामिल नहीं होगा, और हालांकि दोनों पक्ष बातचीत कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं होने वाला है। आगे जो होता है वह यूरोप के पूरे सुरक्षा ढांचे को खतरे में डाल सकता है।
यूक्रेन रूस का एक पड़ोसी देश है, जिसका क्षेत्रफल 603,628 वर्ग किलोमीटर है, जो रूस और यूरोप के बीच स्थित है। यह 1991 तक सोवियत संघ का ही हिस्सा था। लेकिन सोवियत संघ के पतन के बाद यूक्रेन एक अलग देश बन गया, जिसकी अर्थव्यवस्था तुललात्मक तौर से सुस्त रही है वैसे तो यूक्रेन की विदेश नीति कहने के लिए पूरी तरह से लोकतांत्रिक और संप्रभु रही है, लेकिन इसके ऊपर अमेरिका और नाटो देश का प्रभाव साफ़ दिखाई देता रहा है।

रूस और यूक्रेन के बीच में तनाव का कारण आखिर क्या है ?
यूक्रेन के साथ रूस के विवाद की सबसे बड़ी वजह यही रही है कि, आखिर यूरोपीय देश यूक्रेन के इतने करीबी क्यों हैं? नवंबर 2013 में यूक्रेन की राजधानी कीव में यूरोपीय संघ के साथ अधिक से अधिक आर्थिक एकीकरण की योजना को रद्द करने के बाद यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
सोवियत संघ से अलग होने के बाद यूक्रेन ने तेजी से रूस के साथ अपने संपर्कों को खत्म करना शुरू कर दिया है और उसने अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के साथ तेजी से मजबूत संबंध स्थापित करने शुरू कर दिए। लेकिन, यूक्रेन के लिए ऐसा करना आसान नहीं था। क्योंकि, अगर यूक्रेन की सियासत का एक हिस्सा पश्चिमी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना चाहता था, तो एक हिस्सा रूस के साथ नाता तोड़ने को तैयार नहीं था।
ये झगड़ा लगातार बढ़ता गया और साल 2014 में रूस की तरफ झुकाव रखने वाले राष्ट्रपति विक्टर यनुकोविच ने यूरोपीय संघ के साथ एक समझौते को अस्वीकार कर दिया, जिसका बड़े पैमाने पर यूक्रेन में विरोध किया गया और असर ये हुआ, कि रूस की तरफ रूझान रखने वाले राष्ट्रपति विक्टर यनुकोविच को सत्ता से हटा दिया गया।
रूस की तरफ से आरोप लगाया गया, कि यूक्रेन की राजनीति में उथल-पुथल पश्चिमी देशों की तरफ से मचाया गया है और फिर रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया पर हमला साल 2014 में हमला कर दिया और उसपर कब्जा जमा लिया।
NATO का इतिहास
नाटो एक सैन्य गठबंधन (Military alliance) है, जिसकी स्थापना 04 अप्रैल 1949 को उत्तर अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर के साथ हुई। नाटो का पूरा नाम नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (North Atlantic Treaty Organization- NATO) है।
नाटो को ” द (नॉर्थ) अटलांटिक एलायंस” भी कहा जाता है, नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। संगठन ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके तहत सदस्य राज्य बाहरी हमले की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे। लॉर्ड इश्मे (Hastings Ismay, 1st Baron Ismay) नाटो के पहले महासचिव बने थे।
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व रंगमंच पर अवतरित हुई दो महाशक्तियों सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का प्रखर विकास हुआ। भाषण व टू्रमैन सिद्धांत के तहत जब साम्यवादी प्रसार को रोकने की बात कही गई तो उसके बदले में सोवियत संघ ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर 1948 में बर्लिन की नाकेबंदी कर दी। इसी क्रम में यह विचार किया जाने लगा कि एक ऐसा संगठन बनाया जाए जिसकी संयुक्त सेनाएँ अपने सदस्य देशों की रक्षा कर सके।
मार्च 1948 में ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड तथा लक्ज़मबर्ग ने ब्रुसेल्स की संधि पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य सामूहिक सैनिक सहायता व सामाजिक-आर्थिक सहयोग था। साथ ही संधिकर्ताओं ने यह वचन दिया कि यूरोप में उनमें से किसी पर आक्रमण हुआ तो शेष सभी चारों देश हर संभव सहायता देगे।
इसी पृष्ठ भूमि में बर्लिन की घेराबंदी और बढ़ते सोवियत प्रभाव को ध्यान में रखकर अमेरिका ने स्थिति को स्वयं अपने हाथों में लिया और सैनिक गुटबंदी दिशा में पहला अति शक्तिशाली कदम उठाते हुए उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन अर्थात नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 को वांशिगटन में की थी।
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 15 में क्षेत्रीय संगठनों के प्रावधानों के अधीन उत्तर अटलांटिक संधि पर 12 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। ये देश थे- फ्रांस, बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैण्ड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैंड, इटली, नॉर्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका। शीत युद्ध की समाप्ति से पूर्व यूनान, तुर्की, पश्चिम जर्मनी, स्पेन भी सदस्य बने और शीत युद्ध के बाद भी नाटों की सदस्य संख्या का विस्तार होता रहा।
4 अप्रैल 1949 को, 12 देशों के विदेश मंत्रियों ने जिनमें बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैण्ड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के देशों के विदेशमंत्री शामिल थे। सभी ने वाशिंगटन, डी. सी. के भागीय सभागार में उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) पर हस्ताक्षर किए थे। संधि पर हस्ताक्षर करने वाले कुछ विदेशी मंत्री अपने करियर में बाद के चरण में नाटो के काम में भारी रूप से शामिल थे।
यूक्रेन क्या चाहता है?
डोनबास में रूस की सैन्य आक्रामकता और क्रीमिया पर कब्जा करने से यूक्रेन के पश्चिमी झुकाव को जनता का समर्थन बढ़ा है। यूक्रेन की सरकार ने कहा है कि वह 2024 में यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए आवेदन करेगी, और नाटो में शामिल होने की महत्वाकांक्षा भी रखती है। 2019 में सत्ता में आए यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने भ्रष्टाचार विरोधी, आर्थिक नवीनीकरण और डोनबास क्षेत्र में शांति को लेकर प्रचार किया था।
रूस क्या चाहता है?
रूस ने पिछले कई महीनों में यूक्रेन के साथ लगती अपनी सीमा पर मोटे तौर पर एक लाख सैनिकों को तैनात किया है। रूस ने फरवरी में होने वाले संयुक्त सैन्य अभ्यास के लिए जनवरी के मध्य में बेलारूस में सैनिकों को भेजना शुरू कर दिया है। इस देश की सीमा यूक्रेन और रूस दोनों से लगती है। अपने सैन्य बलों को वापस बुलाने से पहले पुतिन ने अमेरिका से सुरक्षा की कई मांगें की हैं।
पुतिन ने मांग की है कि यूक्रेन के नाटो में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाए और यह समझौता किया जाए कि नाटो पूर्वी यूरोप के अधिकांश हिस्सों से सैनिकों और हथियारों को हटाए। इस खतरे को गंभीरता से लेने की वजह साफ़ है। पुतिन ने 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया हिस्से को अपने देश में मिला लिया था। यूक्रेन का इतिहास जटिल है और वह बताता है कि वह क्यों लगातार खतरे में है।
- रुस की मांग है कि NATO यूरोप में अपने विस्तार पर रोक लगाए. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने पिछले हफ्ते चेताते हुए कहा था कि अगर रूस के खिलाफ NATO यूक्रेन की जमीन का इस्तेमाल करता है तो अंजाम भुगतना होगा।
- यूक्रेन NATO में शामिल होने की कोशिश कर रहा है. उधर रूस की चेतावनी पर NATO ने कहा है कि रूस को इस प्रक्रिया में दखल देने का अधिकार नहीं है।
- रूस को डर है कि अगर यूक्रेन NATO का हिस्सा बन गया और आगे युद्ध हुआ तो गठबंधन के देश उस पर हमला कर सकते हैं. ऐसे में तीसरे विश्व युद्ध का खतरा बढ़ बढ़ गया है।
पुतिन यूक्रेन पर हमले की धमकी क्यों दे रहे हैं?
यूक्रेन के साथ लगती सरहद पर सैन्य तैनाती बढ़ाने का कारण है कि पुतिन में दंड से मुक्ति की भावना। पुतिन यह जानते हैं कि पश्चिमी राजनीतिक नेता जो रूसी हितों की हिमायत करते हैं और पद छोड़ने के बाद रूसी कंपनियों के साथ जुड़ जाते हैं।
पश्चिमी देशों ने 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में हस्तक्षेप और कंपनियों और अमेरिकी सरकार के लिए काम करने वाले लगभग 18,000 लोगों के खिलाफ साइबर हमले को लेकर रूस के खिलाफ ज्यादातर प्रतीकात्मक प्रतिबंध लगाए हैं। कई मौके पर पुतिन ने देखा है कि कुछ प्रमुख पश्चिमी राजनीतिक नेताओं ने रूस के साथ गठबंधन किया है। ये गठबंधन पश्चिमी देशों को पुतिन के खिलाफ एकीकृत मोर्चा बनाने से रोक सकते हैं।
पुतिन यूक्रेन को रूस के ’प्रभाव क्षेत्र’ के हिस्से के रूप में देखते हैं – एक स्वतंत्र राज्य के बजाय एक क्षेत्र। स्वामित्व की इस भावना ने क्रेमलिन को यूक्रेन को यूरोपीय संघ और नाटो में शामिल होने से रोकने की कोशिश करने के लिए प्रेरित किया है।
पुतिन यूक्रेन का उपयोग पश्चिमी शक्तियों द्वारा रूस पर लगाए प्रतिबंध हटाने के लिए भी कर रहे हैं। फिलहाल अमेरिका ने रूस के खिलाफ विभिन्न राजनीतिक और आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले से राजनयिक स्तर पर अधिक बातचीत हो सकती है जिससे इन प्रतिबंधों पर रियायतें मिल सकती हैं।
मौजूदा हालात क्या हैं?
रूसः पिछले साल अप्रैल में रूसी सैनिकों ने यूक्रेन सीमा के पास युद्धाभ्यास शुरू किया था. तनाव बढ़ा तो युद्धाभ्यास तो रोक दिया, लेकिन अब भी यूक्रेन सीमा पर 1 लाख जवान तैनात हैं. अमेरिकी इंटेलिजेंस के मुताबिक, रूस कभी भी यूक्रेन पर सैन्य हमला कर सकता है।
यूक्रेनः ब्रिटेन ने एंटी टैंक हथियार यूक्रेन भेजना शुरू कर दिए हैं. कनाडा ने भी स्पेशल फोर्स भेज दी है. अमेरिका की ओर से भी हथियारों की पहली खेप यूक्रेन भेजी गई है. रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका ने 90 टन की सैन्य सामग्री भेजी है जिसमें खतरनाक हथियार भी शामिल हैं।