साल 1928, गर्मियों का मौसम था, जवाहरलाल नेहरू को सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के जुर्म में जेल में रखा गया था। इंदिरा उस समय छोटी थी और वो मसूरी में अपनी गर्मियों की छुट्टिया बिता रही थी।
इलाहबाद, नैनी जेल की परिधि में बैठकर, वो विभिन्न प्रकार के साहित्यिक किताब पढ़ा करते थे जिसकी झलक उनके द्वारा लिखे गए खतों में देखने को मिलती है । उनके लेखन आधार उनके द्वारा पढ़े गए साहित्य जरूर थे पर वो लेख किसी छात्र विशेष के लिए नहीं बल्कि खुद उनकी बेटी के लिए थे।
उनके लेख कुछ 196 खंडो का संग्रह था जिसे नेहरू ने एक साथ एक जगह पिरोने की कोशिश की थ। वास्तव में देखा जाये तो ये ऐतिहासिक संग्रह एक ऐसी चिठ्ठी थी जो एक भावुक और बेटी के भविष्य को लेकर चिंतित पिता द्वारा लिखी गयी थी, जिसकी बेटी अभी-अभी किशोरावस्था में कदम रख रही थी और पिता को बेटी के गलत राह पर जाने का डर था क्योंकि वो उस वक्त उसके साथ नहीं थे ।
उनका पहला खत ‘बुक ऑफ़ नेचर’ था जिसमे वो बेटी को यह बताते है कि ब्रह्माण्ड में जीवन कबसे और कैसे शुरू हुआ। बाकी आगे के खतो में वो अपनी बेटी से भाषा, विज्ञानं, व्यापर, समाज, इतिहास, भूगोल और महाकाव्य से जुडी बातो का जिक्र करते है।
पिता के खतों पर बेटी इंदिरा गाँधी कि प्रतिक्रिया:
1930 में जब इंदिरा गाँधी 13 साल की होने वाली थीं तब नेहरू ने उन्हें और विस्तृत पत्र भेजना शुरू किया। इन पत्रों में उनकी दुनिया की समझ शामिल थी जो वह अपनी बेटी को आगे बढने के लिए देना चाहते थे।
जेल में रहते हुए भी, वह यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनकी बच्ची पिता की शिक्षाओं से रहित न हो। इसके बाद अगले चार वर्षों में नेहरू ने जेल से अपनी बेटी को लगातार पत्र लिखे और जिसके शब्द आज भी एक प्रेरणा श्रोत है।
संन 1973 में इंदिरा गाँधी ने इन पत्रों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह पत्र लोगों के लिए उनकी चिंता को व्यक्त करते है । इन पत्रों को पढ़ने के बाद इंदिरा गाँधी ने घंटो अपना समय पत्थरो, पौधो, कीड़ो के जीवन और रात में तारों को देखते हुए बिताया।

जवाहरलाल नेहरू द्वारा बेटी इंदिरा गाँधी क्या सीख़ दी गयी?

नेहरू ने अपनी बेटी से कहा कि मुझे मालूम है कि इस पत्र में जो छोटी-छोटी बाते जो मैं तुम्हे बताने जा रहा हूँ वो शायद तुम्हे अभी समझ न आये लेकिन मुझे उम्मीद है कि इन थोड़ी-सी बातों को भी तुम शौक से पढ़ोगी और समझने कि कोशिश करोगी।
- मेरी प्यारी बेटी इंदिरा, हम जब साथ में थे तो हम दोनों ने आपस में देश-दुनिया के बारे में बहुत सारी बातें कीं।
- लेकिन यह संसार बहुत बड़ा है, और इस संसार के आगे भी एक रहस्यों से भरा हुआ संसार है। इसलिये हममे से किसी को भी ये सोचना नहीं चाहिये कि हम सबकुछ सीखकर बहुत बुद्धिमान हो गये हैं। हमारे जीवन में सीखने को हमेशा बहुत कुछ बचा रहता है।
- प्यारी बेटी जो अपने को बदलकर आसपास की चीजों में मिला देते हैं, उनके लिए जिंदा रहना आसान हो जाता है।
- कितना अच्छा होता अगर, अगर दुनिया के सभी आदमी खुश और सुखी होते। हमें कोशिश करनी चाहिए कि सारी दुनिया ऐसी हो जाए जहां लोग सुकून से अपना जीवन जी सकें ।
नेहरू द्वारा इंदिरा को पढ़ाया गया सभ्यता और मज़हब का पाठ:
सभ्यता क्या है?
नेहरू ने बेटी इंदिरा को लिखे अपने खत में सभ्यता की परिभाषा बताई और साथ ही उन्होंने किशोरावस्था में कदम रख रही इंदिरा को इस बात की जानकारी भी दी कि आखिर समाज में सभ्य कौन है?
उन्होंने कहा कि, ” मैं आज तुम्हें अपने पुराने जमाने की सभ्यता कि बात बताता हूँ लेकिन इसके पहले तुम्हे यह समझना होगा कि सभ्यता का अर्थ आखिर क्या है? सभ्यता का अर्थ है बर्बरता से दूर जाना हम बर्बरता से जितनी दूर जाते हैं उतने ही सभ्य होते जाते हैं.”
मजहब की शुरुआत कैसे हुई?
नेहरू ने अपने खतों में साफ़ अक्षरों में बताया है कि पहले के जमाने में लोग भगवान से बहुत डरते थे और इसलिए वह उन्हें भेंट देकर, खासकर खाना पहुंचा कर, हर तरह की रिश्वत देने की कोशिश करते रहते थे।
देवताओं को खुश करने के लिए वे मर्दों-औरतों का बलिदान तक करने को तैयार हो जाते थे यहां तक कि अपने ही बच्चों को मार कर देवताओं को चढ़ा देते थे। नेहरू ने अपने खत में लिखा है कि, “मजहब पहले डर के रूप में आया और जो बात डर से की जाए वो अवश्य ही बुरी है।
तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मजहब हमें बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें सिखाता है जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम दुनिया के मज़हबों का हाल पढ़ोगी और तुम्हें मालूम होगा कि मजहब के नाम पर क्या-क्या अच्छी और बुरी बातें की गई हैं।
वहा तुम्हे सिर्फ यह ध्यान देना होगा कि मजहब का खयाल कैसे पैदा हुआ और यह क्यों आगे बढ़ा फिर चाहे वह जिस तरह भी बढ़ा हो, वो तुम्हे अच्छे से समझना है ।