गहराईयाँ फिल्म रिव्यु: आइये जानते है कि आखिर क्यों हो रही है इस फिल्म की इतनी आलोचनाएं!

क्या है इस फिल्म की कहानी ?

गेहराईयां दो जोड़ों की अलग अलग कहानी है जो आगे चलकर मिक्स हो जाती है। अलीशा (दीपिका पादुकोण) मुंबई में स्थित एक योगा प्रशिक्षक है। वह एक योगा आधारित ऐप विकसित कर रही है, जिसके लिए उसे इन्वेस्टर की आवश्यकता होती है, उनके पिता विनोद (नसीरुद्दीन शाह) के साथ उसके तनावपूर्ण संबंध होते हैं।

विनोद जबरन अपने परिवार के साथ नासिक  शिफ़्ट हो जाते है जिसके बाद उनकी मां (पवलीन गुजराल) की आत्महत्या से मृत्यु हो जाती है। वह अभी भी अपनी मां को खोने के सदमे से बाहर नहीं निकल पाई है! 6 साल से, अलीशा एक विज्ञापन पेशेवर करण (धैर्या करवा) के साथ रिश्ते में है, जिसने अपना उपन्यास लिखने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी।

बातों में बात बात पर लड़ाई के कारण उनके रिश्ते में भी दरार आ जाती है। अलीशा की चचेरी बहन टिया (अनन्या पांडे) पूर्व और करण को अलीबाग में टिया के फार्महाउस में आमंत्रित करती है। टिया करण को भी अच्छी तरह से जानती है और वह चाहती है कि अलीशा और करण उसके प्रेमी ज़ैन (सिद्धांत चतुर्वेदी) से मिलें। चारों मिलते हैं और अलीशा और ज़ैन अपने-अपने पार्टनर की जानकारी के बिना एक-दूसरे की ओर आकर्षित हो जाते हैं।

ज़ैन एक स्व-निर्मित व्यक्ति है जिसने कम उम्र में अपने हिंसक पिता और असहाय माँ को छोड़ दिया और अपने तरीके से काम किया। वह रियल्टी व्यवसाय में है और एक महंगी, स्वप्निल परियोजना को एक साथ रखने की कोशिश कर रहा है। टिया के पिता भी ज़ैन को उसके उद्यम में मदद कर रहे हैं।

अलीबाग में शानदार समय बिताने के बाद, वे मुंबई लौट आते हैं। ज़ैन और अलीशा गुप्त रूप से संपर्क में रहते हैं। ज़ैन अलीशा के योग स्टूडियो भी जाता है क्योंकि उसे पीठ दर्द होता है।

यहां दोनों इंटिमेट हो जाते हैं, जल्द ही, टिया कुछ पारिवारिक कानूनी मुद्दों को निपटाने के लिए यूएसए चली जाती है जबकि करण अपना उपन्यास खत्म करने के लिए अलीबाग में स्थानांतरित हो जाता है। इससे अलीशा और ज़ैन को एक सुनहरा मौका मिलता है और वे दोनों अफेयर शुरू कर देते हैं। ज़ैन अलीशा के ऐप के लिए भी फंड जुटाता है। कुछ दिनों के बाद, करण मुंबई लौट आता है। अलीशा को पता चलता है कि उसने उससे छुपाया था कि एक प्रकाशन गृह ने उसके उपन्यास को प्रकाशित करने से मना कर दिया था। उसे उसके साथ संवाद करना और यह पचाना भी मुश्किल था कि वह कमा नहीं रहा है। इसलिए, वे टूट जाते हैं।

ज़ैन भी टिया के साथ अपने अफेयर को खत्म करने का वादा करता है लेकिन एक एक काम के लिए उसे 6 महीने तक इंतजार करना पड़ता है। ज़ैन और टिया की तीसरी वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित एक पार्टी में, ज़ैन को उसके व्यापारिक सहयोगी जितेश (रजत कपूर) द्वारा सूचित किया जाता है कि वे एक बड़े समय और कानूनी और वित्तीय संकट में पड़ने वाले हैं, जब एक बैंकर, जिसने उनके खराब ऋण को मंजूरी दे दी होती है उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है,  ज़ैन पहले से ही इस जानकारी को संसाधित कर रहा है जब अलीशा आती है और उसे बताती है कि वह अपने बच्चे के साथ गर्भवती है।

आगे क्या होता है इसी पर यह फिल्म आधारित है !

क्यों हो रही है इसकी आलोचना ?

‘गहराइयां’ को  सोशल मीडिया पर बहुत से आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है, इसे दोनों तरफ से पोलराइज़्ड रिएक्शंस मिल रहे हैं। किसी को यह फिल्म बहुत पसंद आई, तो किसी को बिल्कुल नहीं आई। फिल्म के अलग-अलग हिस्सों को लेकर भी लोगों के अलग-अलग मत नजर आ रहे हैं।

‘गहराइयां’ को एक ऐसी फिल्म बताकर प्रमोट किया जा रहा है जो मॉडर्न टाइम की रिलेशनशिप को दर्शाती है मगर इस सब के बीच ये फिल्म ढेर सारे टॉपिक्स को भी कवर करती है, जैसे- इनफिडेलिटी यानी बेवफाई और डिसफंक्शनल फैमिली यानी ऐसी फैमिली, जिनमें ढेर सारी समस्यआएं मौजूद हो ऐसी फैमिली से आने वाले बच्चों में एंग्ज़ायटी और इमोशनल अन-स्टेबिलिटी का होना जायज है। 

‘गहराइयां’ इन सभी मसलों को अपने तरीके से दर्शाती है यह अलग बात है कि हर टॉपिक को कवर करने का डायरेक्टर का तरीका सही नहीं था। 

लोगों को ‘गहराइयां’ से दिक्कत यह है कि वो रिलेशनशिप्स में चीटिंग को प्रमोट कर  रही है, बड़ी बेसिक सी बात है कि कोई ऐसा क्यों चाहेगा कि कोई उसे चीट करे या फॉर द मैटर ऑफ फैक्ट कोई किसी को भी चीट करे, इससे ज़्यादा अनैतिक और दुखदाई चीज़ कुछ नहीं हो सकती है, जहां तक लोगों और उनकी रिलेशनशिप्स का सवाल है, ये फिल्म बस दिखाने की कोशिश कर रही है कि  रिश्ते में ऐसा भी होता है। 

उसका कहना ये नहीं है कि ऐसा ही होता है सबके साथ, जिन लोगों को आज वो फिल्म पसंद नहीं आ रही, हो सकता है कुछ समय के बाद आए  या नहीं भी आए कोई भी फिल्म सबके लिए नहीं बनाई जाती और सबको पसंद नहीं आती  हर फिल्म का एक फिक्स टारगेट ऑडियंस होता है जिन तक वो सन्देश पहुँचाना चाहते है। 

‘गहराइयां’ में हर वो बात थी, जो उसे हिंदी सिनेमा की लैंडमार्क फिल्म बना सकती थी। हर फिल्म को तीन हिस्सों में तोड़ा जाता है पहला  एक्टिंग,  जहां कहानी और उसके किरदारों को एस्टैब्लिश किया जाता है, दूसरे बड़े मशहूर फिल्ममेकर और राइटर हैं जो आरॉन सॉर्किन, ‘फ्यू गुड मेन’, ‘मनीबॉल’, ‘स्टीव जॉब्स’ जैसी फिल्में लिख चुके हैं, ‘द ट्रायल ऑफ द शिकागो 7’ जैसी फिल्म बना चुके हैं।

‘गहराइयां’ में इसके इंटीमेट सीन्स को लेकर भी काफी विवाद हो रहा है मगर फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे बेहद बोल्ड मान लिया जाए।

शायद ये फिल्म को प्रमोट करने के लिए इस्तेमाल किया गया हथकंडा हो सकता है मगर इंटीमेसी डायरेक्टर का क्रेडिट देना ज़ाहिर तौर पर एक अच्छी शुरुआत मानी जा सकती है। तमाम खामियों के बावजूद ‘गहराइयां’ को एक बार देखा जाये तो इसमें कोई बुराई नहीं होगी।

ये समझने के लिए कि मच्योर स्टोरिटेलिंग क्या होती है, ये जानने के लिए कि सिनेमा बनाते समय क्या नहीं करना है और क्या नहीं और सबसे ज़रूरी बात ये कि फिल्म देखना बहुत अपने एक निजी अनुभव होता है जब आप कोई भी फिल्म देखकर किसी से प्रभावित हुए बिना अपनी राय रखते है तो भेड़चाल से बच जाते है।